रंग चढ़ा है इश्क का

रंग चढ़ा है इश्क का


रंग चढ़ा है इश्क का या फिर खुमारी छाई है                    ना जाने ये कैसा जादू लेकर बरखा आई है।

पक्षी कलरव करते झूमें, नाच रहे हैं मोर                   कोयल बन बन कूकती, दादुर करते शोर                   धरती सारी हरियाली की चादर ओढ़ मुस्काई है              ना जाने ये कैसा जादू लेकर बरखा आई है।

कलकल बहते झरने गाते मस्ती का गान
नदिया नाले सब उफने हैं देखो इनकी शान
मंद मंद मुस्काए हलधर खेतों में खुशहाली आई है
ना जाने ये कैसा जादू लेकर बरखा आई है।

बिरहन के घर झूला झूले पड़ी प्रेम फुहार
परदेसी सावन घर आया लेकर प्रीत सिंगार
तीजों की खुशियां महकी हैं हंसी खुशी भी छाई है
ना जाने ये कैसा जादू लेकर बरखा आई है।

नाव बनाकर बचपन खेले छप छप के सब खेल
सड़कें ताल तलैय्या सारी, बंद हो गई रेल
घर बैठे हैं बाबू सारे, चाय पकोड़ी लाई है
ना जाने ये कैसा जादू लेकर बरखा आई है।।

आभार – नवीन पहल – १३.०८.२०२३ 😁😁

आधे अधूरे मिसरे/ प्रसिद्ध पंक्तियां प्रतियोगिता हेतु 

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2 Comments

Wahhhhh बहुत ही सुंदर और बेहतरीन रचना

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Milind salve

13-Aug-2023 11:48 AM

Nice 👌

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